रविवार, 19 जुलाई 2015

वह अदभुत प्रकाश पुंज ! That Amazing light beam

सुबह का समय | मैं ऋषिकेश में गंगा तट पर बालू के उपर टहल रहा था | निर्विचार अपने में हीं मुग्ध ! सुंदर दृश्य का अवलोकन कर रहा था | कल कल करती माँ गंगा | किनारों पर दूर तक  रेत  बिखरा हुआ | मन को मुग्ध कर देने वाले विशाल पर्वत | कभी कभी कानों में मन्त्रों तथा घंटों की  ध्वनियाँ गूँज जाती थी | और कभी  नथुनों में सुगन्धित वायु प्रवेश कर जाती थी | गंगा के किनारे बालू पर  आसन बिछा कर कुछ  साधक विभिन्न आसनों का प्रैक्टिस कर रहे थें , तो कुछ ध्यान लगा कर बैठे थे |
       मैं भी अपने आप में मुग्ध था और ध्यान करने की सोच रहा था | एक चट्टान पर मैं बैठ गया और आँखें बंद कर के ध्यान करने की चेष्टा करने लगा | आँखें बंद करने पर कुछ देर कुछ कल्पनाएँ तंग करती रहीं | किन्तु प्रयास पूर्वक ध्यान लगाने की चेष्टा करने लगा | सर्व प्रथम आँखे बंद कर के ध्यान को दोनों आँखों के मध्य भ्रू मध्य में स्थिर करने की कोशिश करने लगा | धीरे धीरे प्रयास से मेरी सारी चेतना सिकुड़ कर भ्रू माध्यों में स्थिर हो गयी | मैं प्रयास पूर्वक ध्यान को करीब दस मिनट वहीँ स्थिर रखा | कोई अनुभव न होने की स्थिति में मैं डिगा नहीं ध्यान को वहीँ स्थिर रखा | कुछ देर में परिणाम मिला | देखता हूँ एक बहुत हीं सूक्ष्म प्रकाश पुंज  बिलकुल सरसों के दाने के बराबर दोनों भ्रू मध्य के बिच उत्पन्न हुआ | मैं धीरे धीरे उसमे खोने लगा | कुछ हीं देर में वह प्रकाश पुंज  बढ़ने लगा | और बढ़ते बढ़ते मेरे सारे शरीर को ढक लिया | आनन्द की लहरें हिलोरें लेने लगी | अब वह प्रकाश पुंज  मेरे शरीर तक हीं सिमित न रहा | वह प्रका.श पुंज  फैलने लगा | वह फैलता चला गया | पर्वत , माँ गंगा , सारे लोग उस प्रकाश पुंज  में  ढके दिखाई देने लगें | वह प्रकाश पुंज फैलता हीं चला जा रहा था | सारा विश्व उससे ढका दिखाई देने लगा | सारे अन्तरिक्ष में वह प्रकाश फैला दिखाई देने लगा | मैं उसमे हीं खोया रहा | घंटों खोया रहा | फिर धीरे वह प्रकाश पुंज सिमटने लगा | सिमटता गया सिमटता गया | पुन : अपने छोटे रूप में दोनों भ्रू मध्यों के बीच दिखाई दिया और लुप्त हो गया |
       मैं हैरान उसे समझने की कोशिश करने लगा |
नोट : यह एक ध्यान प्रयोग है | इसे करने के पूर्व अपने बगल में घंटे भर का अलार्म अवश्य  सेट कर लें |
That Amazing light beam .
 Great morning time .  I was walking up sand on the banks of the Ganges in Rishikesh . In my Without thought the enchanted . I observed beautiful scene ………
First with your eyes closed to focus both eyes began to try to stabilize in mid center of eye brow . by my effort   my whole consciousness gradually shrink and  became stagnant in eye brow . In the absence of any experience there as I kept not deterred attention .  After sometime I got result .  I saw a light beam in mid of my eye brow size was just  a mustard .  I'm slowly started drowning in it . After some time light beam was growing . And cover my whole body . Waves of joy began to undulate . Now the light beam is not limited to my body . The light beam began to spread . It spread . Mountain, Mother Ganga, many people begin appearing covered in the light beam . It was traveling light beam spreads .  The whole world seemed to be covered by in the same . It seemed to spread light in all space . I was immersed in it .  After an hour Then slowly It felt light beam folding . Has been shrinking shrinking . And lastly it was disappear between my Eye brow . 
I think what was it .
Note : It is a meditation exercise . Please set one hour alarm before doing it .  And keep beside you .

Courtesy  :  Translate by Google

Meditation Breath Awarness ( Hindi ) Guided

वह जादुई एहसास ! That magical feeling

वह जादुई एहसास !
आधी रात्री का समय था नींद नहीं आ रही थी | मन था जो विभिन्न कल्पनाओं के हिलोरें ले रहा था | कभी सुखद कल्पनाएँ तरोताज़ा करती तो कभी दुखद कल्पनाएँ गमगीन कर जातीं | कल्पनाएँ भी कैसी या तो भूत में घटी घटनाओं की या फिर भविष्य की मधुर कल्पना | इन्हीं कल्पनाओं के उधेड़बुन में पड़ा मैं लेटा हुआ था कि न जाने क्या सूझा एक लम्बी गहरी साँस मैंने खिंची | अदभुत शान्ति का अहसास हुआ | मैं बिलकुल चौक गया | मैं  उस शान्ति के प्रति सजग हो गया | मैंने एक और गहरी लम्बी साँस खिंची | मन और शांत हो गया | मैं उस शान्ति को मह्शूश कर सकता था | मैं अपने साँसों के प्रति सजग हो गया | सारी सुखद एवं दुखद कल्पनाएँ न जाने कहाँ छू मंतर हो गएँ | मैं अब अपनी साँसों के प्रति होश से भर गया | नासिका से साँस लेना साँस का श्वासनली से होते हुए फेफड़ों के मध्य में जाना , फिर वापस साँसों का श्वासनली से होते हुए नासिकाओं से निकलना | मैं मह्शूश कर सकता था | श्वास लेते वक्त श्वास की शितलता तथा श्वास छोड़ते हुए श्वास की गर्माहट मैं मह्शूश कर सकता था |
       अंततः अदभुत शान्ति में मैं खो गया | न जाने कब नींद आ गयी |
नोट : यह एक ध्यान प्रयोग है | इसे दस से पन्द्रह मिनट किया जा सकता है | गहरी साँस लेना है और धीरे धीरे श्वास छोड़ना है |
That magical feeling .
It was midnight I am try to sleep .  Mind which was taking various fantasies undulate . Ever darted been inconsolable pleasant fantasies recharges sometimes tragic fantasies . Fantasies of any kind either in the past or future incidents sweet fantasy . I was lying in hell had these fantasies .  Then I take a deep breath. Wonderful peace realized . I was completely startled . I was conscious about  that peace . I take  a deep long breath .  Now mind was more calm . I can feel that Peace .  I was aware about my breath . All pleasant and tragic fantasies was disappear  . I totally aware of my breath . By nasal inhalation Breath go in the middle of the lungs through the trachea Then back through the trachea Breath out through the nasal . I could  feel it . coolness of breath time of inhale breath and hotness of breath time of Exhaling . yes I feel  that .
I WAS IN DEEP PEACE  . 
WHEN SLEEP WAS COME I DON’T KNOW
NOTE -  It is a meditation exercise  . Do it for ten to fifteen minute .  During this period deep inhale and d exhale slowly   .

English translation :  courtesy  Google  


विराट में प्रवेश के सूत्र

ऊर्जा के क्षेत्र में प्रवेश करेंगे जब आप तब कुछ भी और कुछ की भी सुध बुध न रह जायेगी आपको | खो  हीं जायेंगे | बिलकुल भिन्न जगत है चेतना का | आप उसकी तुलना इस धरा पर किसी भी चीज से नहीं कर सकते | बस तैयारी होनी चाहिए उस जगत में प्रवेश करने का |
       अब सवाल है कि उस जगत में कैसे प्रवेश करें | इतेफाक से संजोग से वह विराट चेतना बहुत हीं ऐसे अवसर प्रदान करती है , हमें ऊर्जा के जगत में प्रवेश करने का | आपके निजी  जीवन में ऐसे अनेकों अवसर आयें होंगे जरा स्मरण करें |  किन्तु तैयारी के साथ प्रवेश करना जरा भिन्न बात है | आपको अपने मन को तैयार रखना होगा उस जगत में प्रवेश हेतु | भय सबसे बड़ी बाधा उत्पन्न करेगी उस जगत में प्रवेश हेतु | इसलिए भय को तो बिलकुल त्याग हीं देना होगा | पूर्ण समर्पण रखना होगा उस विराट के प्रति | तब कहीं जा कर प्रवेश होगा उस विराट चेतना में | विराट चेतना में प्रवेश हेतु युक्तियाँ हैं जो अगले अंक में प्रेषित करूँगा |

ॐ शान्ति

शनिवार, 18 जुलाई 2015

गहन चेतना

चेतना की गहनता से जो आनन्द  उपलब्ध  होता है उसका कोई तालमेल नहीं | गहन चेतना में क्या क्या छुपा हुआ है कहा नहीं जा सकता | असीम संभावनाएं हैं इसकी | गहन चेतना में जब आप डूबे होते हैं तब यह ऐसा महासागर है जहाँ से आप अनमोल हीरे मोती निकाल सकते हैं | गहन चेतना हीं आपका मूल स्वभाव है | जब आप घोर निराशा में हों तब समाधान के लिए अपने गहन चेतना की गोद में आयें | यह आपको बहुत हीं प्रेम से अपने गोद में सर रखने की सुविधा देता हुआ आपके बालों को सहलाता हुआ आपको प्रेम से समाधान सूझाता है | अदभुत शान्ति का अहसास दिलाता है यह आपकी चेतना | जब आप गहन चेतना में डूबे होते हैं तब आपका नौकर आपका मन कहीं दूर दूर तक नहीं दिखाई देता | मन ऐसा नौकर है या यूँ कहें नौकरशाह है जो हमेशा आपके उपर हावी रहता है | है तो यह नौकर किन्तु मालिक बन बैठता है | यहीं से समस्या शुरू होती है | गहन चेतना में डूबने पर मन भाग जाता है याद रखें भाग जाता है भगाना नहीं पड़ता | गहन चेतना में डूबने के बाद  आप कह उठेंगे miracle are possible जी यकीन मानिए

The joy that comes from the depths of consciousness are incompatible .What is hidden deep in the consciousness can not be said. Its possibilities are limitless .When you are immersed in intense consciousness ,Then it is the ocean, from which you can extract the precious diamonds and pearls . intensive consciousness is your original nature . When you are in abject despair for the solution come in the lap of his profound consciousness . This allows love to head up into their lap  shows the solution with love .
English translation : Google